कळेना मलाही कशी मी, कशी मी?
उगा का पुसावे, जशी मी तशी मी!
कधी मौन ओढून माझ्याच कोषी
कधी बोलकी मुक्त मैना जशी मी
कधी पाय उचलून उमद्या धिराने
कधी आत्मसंदेही कैदी जशी मी
कधी घेउनि हाती नेतृपताका
कधी चालते मागुतिही अशी मी
कधी वाहते सत्यओझे उराशी
कधी राहते स्वप्नवेडी जशी मी
कशी मी असे गूढ माझे मलाही
तुझी ना सखी मी? जशी मी तशी मी!
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7 comments:
:)
chaan aahe :)
sundar :)
:)
Sundar! :)
Khup sundar!
Wow Sumedha, i seem to be discovering ever new facets of your personality. While I thought you were good on stage, here you write a beautiful poem which i read and did understand and appreciate too. All the best -vidya
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